प्रेमचंद की कहानियों का मूल स्तर (टिप्पणी)

  प्रेमचंद की कहानियों का मूल स्तर (टिप्पणी)
 उत्तर 
        कहानी साहित्य की सबसे सफलतम विधा है, यह एक ऐसा दर्पण है जिसमें व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों, उनके सुख-दुख के क्षणों की तस्वीरों को देखा जा सकता है। यह हिंदी कहानी की उपलब्धि है कि अपने प्रारंभिक काल में मुंशी प्रेमचंद जैसे मानव मन के कुशल चितेरे मिले।जिन्होंने हिंदी उर्दू में एक नए युग का सूत्रपात किया।
         प्रेमचंद हिंदी कहानी के शिखर पुरुष है उन्होंने अपने रचनाकाल में लगभग 300 कहानियां लिखी जो कि हिंदी कहानी के विकास का एक चरण मात्र न होकर एक छलांग है। 
प्रेमचंद की कहानी परंपरा के विभिन्न उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर उसे दो चरणों में बांटकर अध्ययन करते हैं     प्रारंभिक तथा परिपक्व
        प्रेमचंद अपने प्रारंभिक दौर (1907 से 1925) में आदर्शवादी कहानियां लिखते थे, जिसका अंत किसी एक घटना के समापन बिंदु, शिक्षा, या हृदय परिवर्तन के साथ होता था। इस दौर में प्रेमचंद पर गांधीवाद, अहिंसा का भी प्रभाव देखने को मिलता है। इस प्रारंभिक दौर में प्रेमचंद की कहानियां किसी निश्चित वर्ग पर आधारित होती थी। जिसमें घटनाओं की संख्या अधिक होती थी। जैसे पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, मंत्र, मुक्तिपथ आदि।
        1925 तक आते-आते प्रेमचंद पर आदर्शवाद के तत्व कमजोर होने लगे तथा उनकी कहानियों में यथार्थ के तत्व उपस्थित होने लगे जिसका उच्चतम बिंदु कफन कहानी में देखने को मिलता है। अपनी इस परिपक्व कहानी कला की अवस्था में चरित्र स्वतंत्र दिखाई देते हैं तथा वे स्थिति प्रदान कहानियों के रूप में सामने आते हैं जैसे अलग्योझा, ईदगाह, सद्गति, पूस की रात, कफन आदि कहानियों में देखने को मिलते हैं।

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