कृष्णा सोबती की कहानियां : कथ्य का वैविध्य (टिप्पणी)

 कृष्णा सोबती की कहानियां : कथ्य का वैविध्य (टिप्पणी)
उत्तर 
        कृष्णा सोबती हिंदी की नारी लेखन परंपरा की सशक्त हस्ताक्षर है जिन्होंने न केवल कहानी बल्कि उपन्यास परंपरा में भी प्रमाणिक लेखन का कार्य किया है।
        नारी लेखन के समर्थक नारीवाद की इस प्रमुख मान्यता से सहमत हैं कि नारी की समस्याओं को नारियां ही समझ सकती है, पुरुष नहीं; क्योंकि संवेदना चाहे कितने भी गहरी क्यों न हो वह स्वयंवेदना के समकक्ष नहीं हो सकती।
         कृष्णा सोबती का सबसे प्रसिद्ध कहानी संग्रह ‘बादलों के घेरे’ हैं जो उनकी एक लंबी कथा यात्रा को समेटती है। इसमें सम्मिलित 24 कहानियां को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटकर विश्लेषण कर सकते हैं— 
        1. प्रथम वर्ग में प्रेम और स्त्री पुरुषों के संबंध की कहानियां हैं जिसमें एक सैलानी किस्म की युवती को केंद्र में रखकर असफल प्रेम की रोमानी और काफी कुछ भावुक लगने वाली स्थितियों को बुना गया है। उदाहरण— 'बादलों के घेरे', 'पहाड़ के साए तले।'
        2. दूसरे वर्ग की कहानियों में स्त्री की नियति को उसके परिवेशगत द्वंदात्मक संबंधों के संदर्भ में आंकने की कोशिश की गई है। इन कहानियों में कृष्णा सोबती निषेध और नकारात्मक दृष्टि को खारिज करती हुई स्त्री की यातना को पूरे सामाजिक परिदृश्य में अंकित करती है। उदाहरण के लिए ‘बदली बरस गई’, ‘आजादी शम्मोजान की’
         3. तीसरे वर्ग में अविभाजित पंजाब और देश विभाजन की त्रासदी या तनाव और विडंबना से संबंधित कहानियां है। उदाहरण — ‘सिक्का बदल गया’, ‘मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा’।
         कृष्णा सोबती की कहानियों में भाषा मन की सूक्ष्म संवेदनाओ को पकड़ने की क्षमता रखती है। इनका महत्व उनकी उस साफगोई की वजह से है जो उनके नारी विश्लेषण में दिखती है।




 कृष्णा सोबती की कहानी लेखन में स्त्री विमर्श का संदर्भ बताइए।
 उत्तर

         कृष्णा सोबती हिंदी नारी लेखन की सबसे सशक्त हस्ताक्षर है। जिन्होंने हिंदी कहानी के साथ-साथ उपन्यास परंपरा में भी प्रमाणिक लेखन किया है। नारी लेखन के रचनाकार इस बात से सहमत है कि "नारी की समस्या को केवल नारिया ही समझ सकती है पुरुष नहीं क्योंकि संवेदना चाहे कितने भी गहरे क्यों ना हो वह संवेदना के समकक्ष नहीं हो सकती।"
  •  कृष्णा सोबती की कहानियों में स्त्री विमर्श
    •  कृष्णा सोबती की कहानियों में स्त्री यौनिकता प्रमुखता से केंद्र में आ गई इससे पहले पुरुष यौनिकता ही केंद्र में थी।
    •  कहानियों में मूल समस्या पारिवारिक संबंधों की टूटन और स्त्री-पुरुष संबंधों में आया बदलाव है
    • उनकी कहानी में बोल्डनेस दिखाई देती है जो नारी विश्लेषण का उच्चतम स्तर है। कृष्णा सोबती की कहानियों में नारी को एक स्वतंत्र व्यक्ति का दर्जा मिला।
            वास्तव में उनकी कहानियों में नारी को पहली बार स्वतंत्र व्यक्ति का दर्जा मिला। इस रूप में जो कार्य सिद्धांत के स्तर पर सीमोन दी बाउवर ने किया वहीं हिंदी कहानियों के स्तर पर कृष्णा सोबती ने किया।
        स्त्री की यातना को उसके पूरे सामाजिक परिपेक्ष में अंकित किया है। इस संदर्भ में बदली बरस गई, गुलाब जल गंडेरिया, आजादी शम्मोजान की आदि उल्लेखनीय हैं। वही मित्रो मरजानी का मूल विषय ही है ‘स्त्री पर ला दी गई योजनाओं का अतिक्रमण’ इसकी नायिका तमाम सामाजिक संस्कारों और विश्वासों को खारिज करते हुए अपनी यौन इच्छाओ को सहजता से स्वीकार करती है।



कृष्णा सोबती की कहानियों के आधार पर उसकी कथा भाषा पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। 

उत्तर

 हिंदी की नारी लेखन परंपरा की सबसे सशक्त हस्ताक्षर कृष्णा सोबती ने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में प्रमाणिक लेखन किया है। नारी लेखन के समर्थक रचनाकार इस बात से सहमत हैं कि 'नारी की समस्या को केवल नारियां ही समझ सकती हैपुरुष नहीं। क्योंकि संवेदना चाहे कितनी भी गहरी क्यों ना होवह स्वयं वेदना के समकक्ष नहीं हो सकती।'
    कृष्णा सोबती के कथा साहित्य में नारीवाद का यही बीज भाव विकसित हुआ है। कृष्णा सोबती की सबसे प्रसिद्ध लंबी कहानी मित्रो मरजानी है जिसे हिंदी की अब तक की सबसे बोल्ड कहानियों में शुमार किया जाता है जिसका मूल विषय है स्त्री पर ला दी गई यौन वर्जनाओं का अतिक्रमण। इस कहानी ने एक ही झटके में पुरुष यौनिकता के ढांचे को तोड़कर स्त्री यौनिकता को स्वतंत्र पहचान दी।
         कृष्णा सोबती ने अपनी कहानियों में कथ्य के अनुरूप भाषा का चयन किया है तथा उनकी हर रचना में भाषा अपने पारंपरिक अभिव्यक्ति को तोड़ते हुए एक नई अभिव्यक्ति को ढूंढती है।
इनकी कहानियों की भाषा मन की सूक्ष्म संवेदनाओं को पकड़ने की क्षमता रखती है तथा छोटे छोटे वाले संवाद कहानी को प्रभावपूर्ण बनाते हैं।
    कृष्णा सोबती की कथा भाषा में देशज शब्दों का भरपूर मात्रा में प्रयोग हुआ है जैसे मनुक्खमारहुलारेसंयालेभोड़े आदि। इन शब्दों के साथ-साथ गालियों का प्रयोग इनकी कहानी में देखने को मिलता है।
    कृष्णा सोबती ने पहली बार एक ऐसी भाषा शैली विकसित की जिसे पंजाबी मिश्रित हिंदी कहा जा सकता है इसके अतिरिक्त इनकी कहानियों में पंजाब तथा इसके आसपास की आंचलिक संस्कृति का चित्रण देखने को मिलता है।
    हिंदी कहानी में कृष्णा सोबती का महत्व उस साफगोई या बोल्डनेस की वजह से हैजो  नारीविश्लेषण में दिखती है। इनकी कहानी में पहली बार नारी को स्वतंत्र व्यक्ति का दर्जा मिला है। जो कार्यसिद्धांत के स्तर पर लेखिका सिमोन  बोउआ’ ने अपनी रचना ‘ सेकंड सेक्स  में किया थावही हिंदी कहानी में कृष्णा सोबती ने किया।





 

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