नई कहानी आंदोलन की प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
उत्तर
नई कहानी हिंदी कहानी के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन है जो 1955 से 1963 ईस्वी के बीच विकसित हुआ था। सन 1956 में भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में ‘नई कहानी’ नाम से एक विशेषांक निकाला। इस विशेषांक की कहानियों को नई कहानी कहा गया।
नई कहानी की पहली कहानी को लेकर विवाद है किंतु सामान्य सहमति यही है कि निर्मल वर्मा द्वारा रचित परिंदे ही नई कहानी की पहली कहानी हैं।
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नई कहानी की प्रासंगिकता
1. भोगे हुए यथार्थ पर बल— नई कहानी अनुभूति की प्रमाणिकता पर बल देती है यानी कहानी जीवन के वास्तविक अनुभव के प्रति जवाबदेह होने चाहिए मोहन राकेश तथा निर्मल वर्मा की कहानियां प्रमुख है। शहरी मध्यम वर्ग का जीवन— बड़े शहरों में मध्यम वर्ग की कुछ विशिष्ट समस्याएं होती है जैसे—अकेलापन, अजनबीपन, निरर्थकताबोध आदि को विस्तार पूर्वक व्यक्त किया गया है। अकेली (मन्नू भंडारी), टूटना (राजेंद्र यादव)।
2. मानवीय संबंधों में बिखराव — नई कहानी में रिश्तो में टूटन स्पष्ट तौर पर नजर आता है। ग्रामीण समाज अपने पारंपरिक ढांचे से अलग होकर शहरी मध्यम वर्ग में शामिल हुआ और संयुक्त परिवारों में बिखराव आदि बदलाव देखने को मिलते हैं।
3. स्त्री-पुरुष संबंधों में बदलाव — आत्मनिर्भर बनती हुई नारी जो अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करने को तैयार नहीं थी तथा इस दौर में तलाक तथा विवाहेत्तर संबंध जैसी प्रवृतियां भी तेजी से उभरने लगी।
4. यौन नैतिकता की पुनर्व्यख्या —इसका दावा है कि नैतिकता इस बात से तय होती है कि व्यक्ति समाज के प्रति कितने कर्तव्य निभाता है। व्यक्ति की यौन इच्छाएं तो भूख, नींद और भय की तरह स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं। इसे नैतिकता से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
5. सामाजिक समस्याओं का चित्रण — इन कहानियों में सामाजिक समस्याओं का भी चित्रण दिखाया गया है जैसे मोहन राकेश की 'मलबे का मालिक' (विभाजन की त्रासदी); धर्मवीर भारती की 'गुलकी बन्नो' (स्त्री के सामाजिक मंच की समस्या); हरिशंकर परसाई की भोलाराम का जीव (भ्रष्टाचार की समस्या) प्रमुख है।
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नई कहानी ने पहले की परंपरा को एक झटके में बदल डाला। प्रेमचंद का ग्रामीण और सामाजिक यथार्थ हाशिए पर चला गया तथा शहरी मध्यम वर्ग का भोगा हुआ यथार्थ अपनी तमाम निराशा और मोहभंग के साथ केंद्र में आ गया।