मध्यकाल में काव्य भाषा के रूप में अवधी का विकास (टिप्पणी)

 मध्यकाल में काव्य भाषा के रूप में अवधी का विकास (टिप्पणी)

उत्तर 

    अवधी जैसा कि नाम से ही विदित हैं अवध क्षेत्र की भाषा है यह अयोध्या से निकला हुआ शब्द है जिसका मुख्य क्षेत्र लखनऊ फैजाबाद का है। मध्यकालीन आर्य भाषाओं के उद्गम के समय की भाषाओं में अवधी के उद्गम पर विवाद है।

    भाषा के रूप में अवधी का पहला स्पष्ट उल्लेख अमीर खुसरो की रचना ‘खलीकबारी’ में मिलता है। खुसरो का समय 1253 से 1325 ईस्वी तक माना जाता है अर्थात तेरहवीं सदी के अंत तक अवधी एक भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी थी।

   पहली रचना जो पूर्णत अवधी में है और जिसने अवधी को एक ही झटके में लोक भाषा के पद से उठाकर साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई— मुल्ला दाऊद की ‘चंदायन’ या ‘लोरीकहा’ है।

    इसी परंपरा में अगली रचना कुतुबन की मृगावती है जिसकी रचना 1503 ईस्वी में हुई किंतु सूफी प्रेमाख्यानो की इस समूची परंपरा को सबसे अधिक समृद्धि प्रदान करने वाले कवि मलिक मोहम्मद जायसी है।

     जायसी की रचनाऐं ठेठपन, देसीपन को खोए बिना, मिठास और लोक संस्कृति को धारण करते हुए कथ्य को व्यक्त करती है।

     मध्यकाल में अवधी के काव्य भाषा के रूप में विकसित करने में रामानंद द्वारा प्रवर्तित रामावत संप्रदाय का महत्वपूर्ण योगदान है। इस संप्रदाय का उत्तर भारत पर इतना प्रभाव पड़ा कि कबीर जैसे निर्गुण कवि भी अपने काव्यो में राम कथा प्रसंग को समाविष्ट करने लगे।

     इस प्रकार एक रामकाव्यधारा का ही विकास हो गया जो अवधी में पुष्पित पल्लवित हुई जिसके प्रधान कवि तुलसीदास हैं। तुलसीदास की सर्वाधिक प्रमुख कृति रामचरितमानस हिंदी में ही नहीं बल्कि विश्व की सभी भाषाओं में सफलतम व सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों में से एक है।

     तुलसी और राम काव्य धारा के कवियों की मूल विशेषता जो इन्हें सूफी कवियों से अलग करती है वह है तत्सम शब्दों का प्रयोग हालांकि ये तत्सम शब्द अवधी को संस्कृत बनाने की बजाय तत्सम शब्दों को अवधी रूप में प्रयुक्त करते हैं जैसे -

                             " लोचनु जल रहे लोचन कोना 
                              जैसे परम कृपन कर सोना" 

    इस प्रकार मध्यकाल में अवधी महत्वपूर्ण काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई।

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