UPSC Prelims 2025 Paper PDF – Download Now & Analyze Your Performance

UPSC Prelims 2025 Paper PDF:


UPSC Prelims 2025 Paper PDF – Download Now & Analyze Your Performance

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The UPSC Civil Services Preliminary Examination 2025 has just concluded, and thousands of aspirants across the country are now eagerly looking for the UPSC Prelims 2025 Question Paper PDF. Whether you appeared for the exam or are preparing for future attempts, getting access to the official paper is crucial for understanding the trend, difficulty level, and types of questions asked.


Why Download the UPSC Prelims 2025 Paper?

1. Self-Evaluation: If you appeared for the exam, analyzing the paper helps you estimate your score before results are declared.

2. Trend Analysis: For future aspirants, reviewing past year papers is key to understanding the evolving nature of UPSC's questions.

3. Strategy Refinement: The paper provides insights into subject-wise weightage, helping you fine-tune your preparation.


What's Included in the PDF?

The UPSC Prelims 2025 PDF includes:

* General Studies Paper I (100 questions)

* CSAT Paper II (80 questions – qualifying in nature)

Both papers come with all the questions as asked in the actual exam, along with an answer key and detailed solutions (if you're downloading from reliable sources).


Where to Download the UPSC Prelims 2025 Paper PDF?


You can download the official UPSC Prelims 2025 PDF from:

[UPSC Official Website](https://www.upsc.gov.in) – Usually uploaded a few days after the exam.

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Trusted coaching institutes like Vision IAS, ForumIAS, InsightsIAS, and Drishti IAS often release memory-based question papers with answer keys on the same day of the exam.


 How to Use the Question Paper Effectively?


* Time yourself while attempting the paper to simulate exam conditions.

* Compare with answer keys and mark yourself fairly.

* Note down topics or questions you got wrong and revisit those concepts.

* Discuss tricky questions in study groups or online forums to deepen your understanding.


 Final Thoughts

Accessing the UPSC Prelims 2025 Paper PDF is more than just a download – it’s a powerful resource for every serious UPSC aspirant. Make the most of it by analyzing, learning, and planning your next steps accordingly. Remember, the key to cracking UPSC lies in consistent learning and smart strategy.

UPSC Hindi Literature Books PDF

  • पद्य साहित्य
    • कबीर  :  कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दास 
    •  सूरदास  :  भ्रमरगीत सार (आरंभिक 100 पद) सं. रामचंद्र शुक्ल  
    • तुलसीदास  :  रामचरित मानस (सुंदर काण्ड), कवितावली (उत्तर काण्ड) 
    • जायसी  :  पदमावत (सिंहलद्वीप खंड और नागमती वियोग खंड) सं. श्याम सुन्दर दास 
    • बिहारी  :  बिहारी रत्नाकर (आरंभिक 100 दोहे) सं. जगन्नाथ दास रत्नाकर 
    • मैथिलीशरण गुप्त  :  भारत भारती 
    • जयशंकर प्रसाद  :  कामायनी (चिंता और श्रद्धा सर्ग) 
    • सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’  :  राग-विराग (राम की शक्ति पूजा और कुकुरमुत्ता) सं. रामविलास शर्मा 
    • रामधारी सिंह ‘दिनकर’  :  कुरुक्षेत्र 
    • अज्ञेय  :  आंगन के पार द्वार (असाध्यवीणा) 
    • मुक्ति बोध  :  ब्रह्मराक्षस 
    • नागार्जुन  :  बादल को घिरते देखा है, अकाल और उसके बाद, हरिजन गाथा।


  • गद्य साहित्य
    • भारतेन्दु  :  भारत दुर्दशा 
    • मोहन राकेश  :  आषाढ़ का एक दिन 
    • रामचंद्र शुक्ल  :  चिंतामणि (भाग-1), (कविता क्या है, श्रद्धा-भक्ति)। 
    • निबंध निलय  :  संपादक : डॉ. सत्येन्द्र। बाल कृष्ण भट्ट, प्रेमचन्द, गुलाब राय, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, अज्ञेय, कुबेरनाथ राय। 
    • प्रेमचंद  :  गोदान, ‘प्रेमचंद’ की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ (संपादक : अमृत राय) 
    • प्रसाद  :  स्कंदगुप्त 
    • यशपाल  :  दिव्या 
    • फणीश्वरनाथ रेणु  :  मैला आंचल 
    • मन्नू भण्डारी  :  महाभोज 
    • राजेन्द्र यादव (सं.)  :  एक दुनिया समानांतर (सभी कहानियाँ)

"यह मेरे अभाव की संतान हैं। जो भाव तुम थे, वह दुसरा नहीं हो सका, परन्तु अभाव के कोष्ठ में किसी दूसरे की जाने कितनी कितनी आकृतियां है। जानते हो मैने अपना नाम खोकर एक विशेषण उपार्जित किया है और अब में अपनी दृष्टि में नाम नहीं, केवल विशेषण हूं।"

"यह मेरे अभाव की संतान हैं। जो भाव तुम थे, वह दुसरा नहीं हो सका, परन्तु अभाव के कोष्ठ में किसी दूसरे की जाने कितनी कितनी आकृतियां है। जानते हो मैने अपना नाम खोकर एक विशेषण उपार्जित किया है और अब में अपनी दृष्टि में नाम नहीं, केवल विशेषण हूं।"


संदर्भ:- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के तीसरे अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।

प्रसंग:-
मल्लिका का प्रेमी कालिदास कश्मीर का शासन-भार त्यागने के बाद मल्लिका से मिलने आता लेकिन मल्लिका विलोम के साथ अपना घर बसा लेती है जिससे उनकी एक कन्या भी हुई है। कालिदास के पूछने पर वह उसी कन्या की ओर संकेत करती हुई अपनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती का वर्णन करती हैं–

व्याख्या :- मैं तुम्हे यह बता दूं कि जिस अभावग्रस्त जीवन के अभिशाप को मैने झेला है, यह उसी अभाव की संतान है। मैंने अपने हृदय में जिस भावना के रुप में तुम्हे स्थान दिया था। उस पर कोई भी अन्य व्यक्ति अधिकार नहीं कर सका। तुम वहाँ थे और आज भी तुम्ही वहां विराजमान हो। लेकिन इस शरीर को जो अभाव क्षत-विक्षत कर रहे थे। उसमें मेरी साधनहीनता पर दया करने वाले न जाने कितने लोगो की आकृतियां छाई हुई हैं। मैं तुम्हे यह भी बता दूं कि अब मेरा कोई नाम नहीं रह गया है। मेरा असली नाम समाप्त हो चुका है और अब मैं केवल एक विशेषण - ‘वैश्या’ के नाम से जानी जाती हूं।

विशेष:-

  1. उक्त पंक्तियों में मल्लिका की हार्दिक व्यथा, पीड़ा और निराशा साकार हो उठी है।
  2. कालीदास की उपेक्षा ने मल्लिका को तोड़कर रख दिया हैं।
  3. मल्लिका का उदात्त प्रेम वर्णित हुआ है कि मल्लिका वैश्या का विशेषण स्वीकार करने के बाद भी कालिदास के प्रति प्रेम का त्याग नहीं करती।
  4. गद्यांश की भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त बड़ी बोली हिन्दी है।

"राजनीति साहित्य नहीं हैं। उसमे एक एक क्षण का महत्व होता है। कभी एक क्षण के लिए भी चूक जाते, तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता है। राजनीतिक जीवन की धुरी में बने रहने के लिए व्यक्ति को बहुत जागरूक रहना पड़ता हैं।"

"राजनीति साहित्य नहीं हैं। उसमे एक एक क्षण का महत्व होता है। कभी एक क्षण के लिए भी चूक जाते, तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता है। राजनीतिक जीवन की धुरी में बने रहने के लिए व्यक्ति को बहुत जागरूक रहना पड़ता हैं।"


संदर्भ:- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के द्वितीय अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।

प्रसंग: कालिदास उज्जयिनी में प्रियगुमंजरी से विवाह के बाद कश्मीर का शासक नियुक्त किया जाता है। कश्मीर जाते समय वह अपने ग्राम प्रांतर में रुकता है किन्तु स्वयं मल्लिका से मिलने नहीं आता। उसकी राजमहिषी प्रियंगुमंगरी मल्लिका से मिलने जाती है। कालिदास की चर्चा होने पर प्रियंगुमंजरी मल्लिका से कहती है-

व्याख्या: राजनीति और साहित्य में बड़ा अंतर हैं। राजनीति में यथार्थ के ठोस धरातल पर दृष्टि केन्द्रित रखनी पड़ती है। जबकि साहित्य में व्यक्ति, कल्पना में खोया रहता है और वायवी उड़ानें भरता है। जब कालिदास आत्मविस्मृत हो उठते है तो उन्हे राजीतिक हानि उठानी पड़ सकती है क्योंकि राजनीति में एक-एक पल बहुमूल्य होता है। कहीं पर जरा सी चूक हो जाने पर बहुत बड़ा अनर्थ हो सकता है। राजनीतिक व्यक्ति को प्रत्येक क्षण सावधान रहना होता है और प्रत्येक पग सोम- समझकर उठाना पड़ता है।

विशेष:-

  1. प्रियंमंजरी के कथन से स्पष्ट होता है कि कालिदास राजसी जीवन के बाद में अपने पूर्व जीवन की स्मृतियो में यदा-कदा घिर में जाते हैं।
  2. इस पद्यांश से स्पष्ट होता है कि प्रियंगुमंजरी विदुषी और राजनीति में निष्णात नारी है।
  3. प्रेमचंद ने भी राजनीति और साहित्य का संबंध बताते हुए लिखा कि 'साहित्य, राजनीति की सच्चाई बताने वाला नहीं, वह समाज और राजनीति से आगे चलने वाली मशाल है।
  4. हार्स ट्रेडिंग, पल भर में सरकार गिराना, विधायको की खरीद, मंत्रियों का लालच आदि इसी राजनीतिक विद्रूपता का वर्तमान यथार्थ है।
  5. इस गधाश की भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खड़ीबोली हिन्दी है।

 

"मैं जानती हूं मां, अपवाद होता है। तुम्हारे दुःख की बात भी जानती हूं। फिर भी मुझे अपराध का अनुभव नहीं होता। मैने भावना में भावना का वरण किया है।मेरे लिए वह संबंध और सब संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूं, को पवित्र है, कोमल है, अनश्वर हैं...।"

"मैं जानती हूं मां, अपवाद होता है। तुम्हारे दुःख की बात भी जानती हूं। फिर भी मुझे अपराध का अनुभव नहीं होता।मैने भावना में भावना का वरण किया है।मेरे लिए वह संबंध और सब संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूं, को पवित्र है, कोमल है, अनश्वर हैं...।"

संदर्भ:- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।

प्रसंग: कालिदास और मल्लिका की प्रेम चर्चा गांव में अपवाद का विषय बनी हुई है। इससे मल्लिका की मां अम्बिका दुःखी है। मल्लिका इसे भावनात्मक प्रेम बताती है और अपने भावात्मक प्रेम की पवित्रता को व्यक्त करती हुई माँ से कहती है-

व्याख्या: मां यह सत्य है कि मेरे भावात्मक प्रेम को लेकर गांव में अपयश फैल रहा है और इससे तुम्हे जो दुःख होता है, उसको भी मैं पहचानती हूं, परन्तु इस पवित्र प्रेम में मुझे यह अनुभव नहीं होता कि मैंने कोई अपराध किया है। मैंने अपने में एक भावना स्वीकार कर ली है, अपने लिए चुन ली है। मैंने भावना में भावना का वरण किया है अर्थात मेरा कालिदास के प्रति प्रेम भावात्मक है, जो पूरी तरह पवित्र है। भावात्मक प्रेम का यह सबंध मेरे लिए अन्य समस्त सम्बधों से बड़ा है। मै वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती है। मेरे भावात्मक प्रेम की भावना पवित्र, कोमल और कभी नाश न होने वाली है।

विशेष:-

  1. उपर्युक्त पंक्तियों में प्रेम वासना की अनुभूति न होकर भावात्मक है। 
  2. मल्लिका का प्रेम स्कंदगुप्त की देवसेना की तरह हैं।
  3. मल्लिका अल्हड युवती है जिसे समाज की चिंता नही किन्तु अम्बिका को समाज की चिता है इसलिए उसका क्षुब्ध होना सर्वथा उचित।
  4. प्रेम के सम्बन्ध में बनी हुई गलत धरना आज भी समाजों में देखनें को मिलती हैं।
  5. गंधाश की भाषा प्रवाहमयी खड़ीबोली हिदी'।

"मैं अनुभव करता हूं कि यह ग्राम प्रान्तर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से जुड़ा हूं। उस सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ है, यहां की हरियाली हैं, हरिणो के बच्चे है, पशुपाल है। यहां से जाकर मैं अपनी भूमि से उखड़ जाऊंगा।"

"मैं अनुभव करता हूं कि यह ग्राम प्रान्तर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से जुड़ा हूं। उस सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ है, यहां की हरियाली हैं, हरिणो के बच्चे है, पशुपाल है। यहां से जाकर मैं अपनी भूमि से उखड़ जाऊंगा।"


संदर्भ :- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।

प्रसंग: प्रस्तुत कथन कालिदास का है जब मल्लिका कालिदास को मन्दिर से घर लाकर उसे उजिलासिनी जाने के लिए प्रेरित करती है कि यहां ग्राम- प्रांतर में रहकर तुम्हारी प्रतिमा को विकसित होने का अवसर कही मिलेगा यहां लोग तुम्हे समझ नहीं पाते तभी कालीदास कहता है-

व्याख्या : मल्लिका तुम समस नहीं रही हो। यह ग्राम-प्रांतर की जमीन मेरी जन्मभूमि है और मैं इस भूमि से बचपन से जुड़ा हूं जिसमें मेरे कई अनुभव और सूत्र / यादे है। जिसमे तुम हो, यह नीला आसमान है, पहाड़ो से टकराते हुए बादल है, यहां का हरा-भरा वातावरण है, पशु-पक्षी हरिण और उनके बच्चे है तथा साथ में पशुपालक और ग्रामीण भी है। अगर में यहां से उज्जयिनी चला जाऊगा तो मैं अपनी इन अनुभुतियों के साथ साथ मातृभूमि से दूर हो जाऊगा, ठीक उसी प्रकार जैसे पेड़ जड़ से अलग हो जाता है।

विशेष:-
  1. कालिदास का दुःख भौतिक न होकर भावनात्मक हैं, मल्लिका के साथ-साथ वहां की, प्रकृति व अन्तुओं के प्रति प्रेम का परिचय।
  2. इन पंक्तियों में कालिदास को द्वंदात्मकता का शिकार बताया गया हैं।
  3. भाषा काव्यमयी, प्रवाहमयी खड़ी बोली हिन्दी है।

" 'स्कंदगुप्त' नाटक राष्ट्रीय उन्नति की संवेदना को प्रकट करता हैं।" विवेचना कीजिए। (PYQ - 2023)

" 'स्कंदगुप्त' नाटक राष्ट्रीय उन्नत्ति की संवेदना को प्रकट करता हैं।" विवेचना कीजिए। (PYQ - 2023)

उत्तर:-

जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित 'स्कंदगुप्त' नाटक राष्ट्रीय उन्नति की भावना को प्रमुखता से प्रकट करता है। इस नाटक में भारतीय संस्कृति, इतिहास और राष्ट्रप्रेम का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। स्कंदगुप्त की वीरता और नेतृत्व क्षमता को प्रदर्शित करते हुए, प्रसाद ने भारतीयों के मन में राष्ट्रीय गर्व और स्वाभिमान की भावना जागृत की है। निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा इस नाटक की राष्ट्रीय उन्नति की संवेदना को स्पष्ट किया जा सकता है:

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और राष्ट्रीय गौरव:

'स्कंदगुप्त' नाटक का आधार गुप्त साम्राज्य का इतिहास है, विशेषकर सम्राट स्कंदगुप्त का शासनकाल। स्कंदगुप्त ने अपने शासनकाल में देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए हून आक्रमणकारियों का डटकर सामना किया। इस नाटक के माध्यम से प्रसाद ने भारतीयों को उनके गौरवशाली अतीत की याद दिलाई और यह संदेश दिया कि भारतीय सभ्यता ने समय-समय पर विभिन्न चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है।

2. राष्ट्रप्रेम और बलिदान:

स्कंदगुप्त नाटक में राष्ट्रप्रेम और बलिदान की भावना प्रमुख रूप से दिखती है। स्कंदगुप्त ने अपने व्यक्तिगत जीवन और सुख-शांति को तिलांजलि देकर राष्ट्र की रक्षा की। उनकी यह आत्मत्याग और निस्वार्थ सेवा राष्ट्रीय उन्नति की भावना को प्रकट करती है। प्रसाद ने यह संदेश दिया है कि एक सच्चा नेता वही है जो अपने राष्ट्र की सुरक्षा और समृद्धि के लिए अपने निजी स्वार्थों को परे रखता है।

3. एकता और संगठन:

नाटक में दिखाया गया है कि किस प्रकार विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग एकजुट होकर राष्ट्र की रक्षा के लिए संगठित होते हैं। स्कंदगुप्त ने विभिन्न राज्यों और जातियों को एकजुट किया और उन्हें राष्ट्र की रक्षा के लिए प्रेरित किया। यह भावना आज के समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहां एकता और संगठन की शक्ति को राष्ट्रीय उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

4. सांस्कृतिक पुनर्जागरण:

'स्कंदगुप्त' नाटक में भारतीय संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। प्रसाद ने यह दिखाया है कि एक राष्ट्र की सच्ची उन्नति तभी संभव है जब उसकी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित और संरक्षित हो। स्कंदगुप्त ने न केवल देश की भौतिक सीमाओं की रक्षा की, बल्कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को भी संरक्षित रखा।

5. नेतृत्व और प्रेरणा:

नाटक के माध्यम से प्रसाद ने यह संदेश दिया है कि एक सच्चा नेता वही होता है जो अपने आदर्शों और मूल्यों के प्रति अडिग रहता है और अपने कार्यों से दूसरों को प्रेरित करता है। स्कंदगुप्त की नेतृत्व क्षमता और उनकी दृढ़ता ने राष्ट्र को संकट के समय में भी उन्नति की ओर अग्रसर किया। यह भावना आज के नेताओं और नागरिकों के लिए प्रेरणास्रोत है।

जयशंकर प्रसाद का 'स्कंदगुप्त' नाटक राष्ट्रीय उन्नति की संवेदना को प्रकट करने में अद्वितीय है। इस नाटक ने भारतीयों के मन में राष्ट्रप्रेम, गर्व और स्वाभिमान की भावना को जागृत किया है और यह संदेश दिया है कि एकजुटता, त्याग और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा के माध्यम से ही राष्ट्र की सच्ची उन्नति संभव है।

'श्रद्धा-भक्ति' निबंध के आधार पर प्रेम, श्रद्धा एवं भक्ति का अंत:संबंध स्पष्ट कीजिए। (PYQ - 2023)

'श्रद्धा-भक्ति' निबंध के आधार पर प्रेम, श्रद्धा एवं भक्ति का अंत:संबंध स्पष्ट कीजिए। (PYQ - 2023)

उत्तर:-

आचार्य शुक्ल के 'श्रद्धा-भक्ति' निबंध में प्रेम, श्रद्धा, और भक्ति का गहरा और घनिष्ठ संबंध बताया गया है। इस निबंध में ये तीनों तत्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं। इनका संबंध निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है:

1. प्रेम (Love):

प्रेम को आचार्य शुक्ल ने मानवीय भावनाओं का मूल आधार माना है। यह एक ऐसा तत्व है जो व्यक्ति के मन में किसी अन्य के प्रति आकर्षण और अनुराग उत्पन्न करता है। प्रेम में निष्कामता और निःस्वार्थता होती है, जो इसे पवित्र बनाती है। प्रेम के बिना श्रद्धा और भक्ति का विकास संभव नहीं है, क्योंकि प्रेम ही वह आधार है जो श्रद्धा और भक्ति को पोषित करता है।

2. श्रद्धा (Faith):

श्रद्धा वह भाव है जो किसी उच्चतर शक्ति, व्यक्ति, या आदर्श के प्रति अटूट विश्वास और सम्मान प्रकट करता है। आचार्य शुक्ल के अनुसार, श्रद्धा प्रेम से उत्पन्न होती है। जब प्रेम गहरा हो जाता है, तो उसमें श्रद्धा का समावेश होता है। श्रद्धा व्यक्ति को न केवल विश्वास से भरती है, बल्कि उसे अपने आराध्य के प्रति समर्पित भी करती है। श्रद्धा के बिना भक्ति का अर्थ अधूरा है, क्योंकि श्रद्धा ही वह नींव है जिस पर भक्ति का भवन निर्मित होता है।

3. भक्ति (Devotion):

भक्ति प्रेम और श्रद्धा का चरम रूप है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उस शक्ति या आदर्श के प्रति समर्पित कर देता है, जिसे वह मानता है। भक्ति में आत्मसमर्पण और संपूर्ण निष्ठा होती है। आचार्य शुक्ल के अनुसार, भक्ति वह अवस्था है जहाँ प्रेम और श्रद्धा दोनों मिलकर व्यक्ति को पूर्णता की ओर ले जाते हैं। भक्ति में प्रेम की गहराई और श्रद्धा की स्थिरता होती है, जो व्यक्ति को आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करती है।

अंतर्संबंध (Interrelation):

  1. प्रेम से श्रद्धा का जन्म: आचार्य शुक्ल के अनुसार, जब प्रेम की भावना गहरी होती है, तो उसमें श्रद्धा का समावेश होता है। प्रेम की गहराई ही श्रद्धा की नींव बनती है।

  2. श्रद्धा से भक्ति का विकास: श्रद्धा, जो प्रेम से उत्पन्न होती है, भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। श्रद्धा व्यक्ति को विश्वास और समर्पण की ओर ले जाती है, जो भक्ति का मूल है।

  3. भक्ति में प्रेम और श्रद्धा का समन्वय: भक्ति, प्रेम और श्रद्धा का चरम रूप है। भक्ति में प्रेम की गहराई और श्रद्धा की स्थिरता होती है। ये दोनों तत्व मिलकर भक्ति को पूर्ण और सार्थक बनाते हैं।

आचार्य शुक्ल के 'श्रद्धा-भक्ति' निबंध के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि प्रेम, श्रद्धा, और भक्ति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। प्रेम से श्रद्धा उत्पन्न होती है, और श्रद्धा से भक्ति का विकास होता है। ये तीनों मिलकर व्यक्ति को एक उच्चतर आध्यात्मिक स्तर पर ले जाते हैं।

Upsc Hindi sahitya Test series

 मुख्य परीक्षा को लेकर दृष्टि आईएएस द्वारा आयोजित टेस्ट सीरीज भी काफी उपयोगी होती है। हम आपको इस पेज के माध्यम से उस टेस्ट सीरीज तक पहुंचाने में मदद करेंगे।

टेस्ट सीरीज के लिए नीचे Download PDF पर क्लिक करें।

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