"मैं अनुभव करता हूं कि यह ग्राम प्रान्तर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से जुड़ा हूं। उस सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ है, यहां की हरियाली हैं, हरिणो के बच्चे है, पशुपाल है। यहां से जाकर मैं अपनी भूमि से उखड़ जाऊंगा।"
संदर्भ :- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।
प्रसंग: प्रस्तुत कथन कालिदास का है जब मल्लिका कालिदास को मन्दिर से घर लाकर उसे उजिलासिनी जाने के लिए प्रेरित करती है कि यहां ग्राम- प्रांतर में रहकर तुम्हारी प्रतिमा को विकसित होने का अवसर कही मिलेगा यहां लोग तुम्हे समझ नहीं पाते तभी कालीदास कहता है-
व्याख्या : मल्लिका तुम समस नहीं रही हो। यह ग्राम-प्रांतर की जमीन मेरी जन्मभूमि है और मैं इस भूमि से बचपन से जुड़ा हूं जिसमें मेरे कई अनुभव और सूत्र / यादे है। जिसमे तुम हो, यह नीला आसमान है, पहाड़ो से टकराते हुए बादल है, यहां का हरा-भरा वातावरण है, पशु-पक्षी हरिण और उनके बच्चे है तथा साथ में पशुपालक और ग्रामीण भी है। अगर में यहां से उज्जयिनी चला जाऊगा तो मैं अपनी इन अनुभुतियों के साथ साथ मातृभूमि से दूर हो जाऊगा, ठीक उसी प्रकार जैसे पेड़ जड़ से अलग हो जाता है।
विशेष:-
- कालिदास का दुःख भौतिक न होकर भावनात्मक हैं, मल्लिका के साथ-साथ वहां की, प्रकृति व अन्तुओं के प्रति प्रेम का परिचय।
- इन पंक्तियों में कालिदास को द्वंदात्मकता का शिकार बताया गया हैं।
- भाषा काव्यमयी, प्रवाहमयी खड़ी बोली हिन्दी है।
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