"राजनीति साहित्य नहीं हैं। उसमे एक एक क्षण का महत्व होता है। कभी एक क्षण के लिए भी चूक जाते, तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता है। राजनीतिक जीवन की धुरी में बने रहने के लिए व्यक्ति को बहुत जागरूक रहना पड़ता हैं।"
संदर्भ:- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के द्वितीय अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।
प्रसंग: कालिदास उज्जयिनी में प्रियगुमंजरी से विवाह के बाद कश्मीर का शासक नियुक्त किया जाता है। कश्मीर जाते समय वह अपने ग्राम प्रांतर में रुकता है किन्तु स्वयं मल्लिका से मिलने नहीं आता। उसकी राजमहिषी प्रियंगुमंगरी मल्लिका से मिलने जाती है। कालिदास की चर्चा होने पर प्रियंगुमंजरी मल्लिका से कहती है-
व्याख्या: राजनीति और साहित्य में बड़ा अंतर हैं। राजनीति में यथार्थ के ठोस धरातल पर दृष्टि केन्द्रित रखनी पड़ती है। जबकि साहित्य में व्यक्ति, कल्पना में खोया रहता है और वायवी उड़ानें भरता है। जब कालिदास आत्मविस्मृत हो उठते है तो उन्हे राजीतिक हानि उठानी पड़ सकती है क्योंकि राजनीति में एक-एक पल बहुमूल्य होता है। कहीं पर जरा सी चूक हो जाने पर बहुत बड़ा अनर्थ हो सकता है। राजनीतिक व्यक्ति को प्रत्येक क्षण सावधान रहना होता है और प्रत्येक पग सोम- समझकर उठाना पड़ता है।
विशेष:-
- प्रियंमंजरी के कथन से स्पष्ट होता है कि कालिदास राजसी जीवन के बाद में अपने पूर्व जीवन की स्मृतियो में यदा-कदा घिर में जाते हैं।
- इस पद्यांश से स्पष्ट होता है कि प्रियंगुमंजरी विदुषी और राजनीति में निष्णात नारी है।
- प्रेमचंद ने भी राजनीति और साहित्य का संबंध बताते हुए लिखा कि 'साहित्य, राजनीति की सच्चाई बताने वाला नहीं, वह समाज और राजनीति से आगे चलने वाली मशाल है।
- हार्स ट्रेडिंग, पल भर में सरकार गिराना, विधायको की खरीद, मंत्रियों का लालच आदि इसी राजनीतिक विद्रूपता का वर्तमान यथार्थ है।
- इस गधाश की भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खड़ीबोली हिन्दी है।
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