संदर्भ:- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।
प्रसंग: कालिदास और मल्लिका की प्रेम चर्चा गांव में अपवाद का विषय बनी हुई है। इससे मल्लिका की मां अम्बिका दुःखी है। मल्लिका इसे भावनात्मक प्रेम बताती है और अपने भावात्मक प्रेम की पवित्रता को व्यक्त करती हुई माँ से कहती है-
व्याख्या: मां यह सत्य है कि मेरे भावात्मक प्रेम को लेकर गांव में अपयश फैल रहा है और इससे तुम्हे जो दुःख होता है, उसको भी मैं पहचानती हूं, परन्तु इस पवित्र प्रेम में मुझे यह अनुभव नहीं होता कि मैंने कोई अपराध किया है। मैंने अपने में एक भावना स्वीकार कर ली है, अपने लिए चुन ली है। मैंने भावना में भावना का वरण किया है अर्थात मेरा कालिदास के प्रति प्रेम भावात्मक है, जो पूरी तरह पवित्र है। भावात्मक प्रेम का यह सबंध मेरे लिए अन्य समस्त सम्बधों से बड़ा है। मै वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती है। मेरे भावात्मक प्रेम की भावना पवित्र, कोमल और कभी नाश न होने वाली है।
विशेष:-
- उपर्युक्त पंक्तियों में प्रेम वासना की अनुभूति न होकर भावात्मक है।
- मल्लिका का प्रेम स्कंदगुप्त की देवसेना की तरह हैं।
- मल्लिका अल्हड युवती है जिसे समाज की चिंता नही किन्तु अम्बिका को समाज की चिता है इसलिए उसका क्षुब्ध होना सर्वथा उचित।
- प्रेम के सम्बन्ध में बनी हुई गलत धरना आज भी समाजों में देखनें को मिलती हैं।
- गंधाश की भाषा प्रवाहमयी खड़ीबोली हिदी'।
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