हिंदी भाषा के मानकीकरण में द्विवेदी-युग का योगदान।
उत्तर:–
किसी भाषा के बोलचाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना, उसका मानकीकरण कहलाता है। भारतेन्दु युग में भाषायी द्वेत के बावजूद खड़ी बोली गद्य की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी थी किंतु उसका अभी भी मानक रूप में प्रयोग नहीं हो रहा था। हिंदी के मानकीकरण की दृष्टि से द्विवेदी-युग (1900–1918) महत्वपूर्ण है जिसमें सरस्वती पत्रिका के संपादक के रूप द्विवेदी जी ने इसे एक सक्रिय आंदोलन के रूप में उठाया।
मानकीकरण में द्विवेदी युग का योगदान
- विदेशी भाषा के जो शब्द हिंदी में प्रचलित हो गए है, उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर लिया जाए। जैसे– अदालत(अरबी), रिक्शा(जापानी) ऑपरेशन(अंग्रेजी), सरकार(फारसी) आदि।
- जिन शब्दों का अमानक रूप हिंदी में प्रचलित है, उनका मानक रूप प्रयुक्त किया जाए। जैसे– इस्नें > इसनें, उस्का > उसका आदि।
- संज्ञा सही के साथ परसर्ग को सटाकर ना लिखा जाए। जैसे– जीत ने रचना को किताब दी।
- सर्वनाम शब्दों के संबंध में परसर्ग को सटाकर लिखा जाए। जैसे– मैने आपको सुबह ही बताया था। (मैं–सर्वनाम, ने–परसर्ग)
- संस्कृत, फारसी, अरबी आदि भाषाओं के कई पुल्लिंग शब्द जो हिंदी में स्त्रीलिंग के रूप में व्यवहार में होते है, उन्हें स्त्रीलिंग के रूप में स्वीकार किया जाए। जैसे– आत्म, वायु, मर्यादा आदि।
- ब्रज भाषा के शब्द जो हिंदी में प्रयोग होते है या क्रिया के अमानक रूप, का प्रयोग बंद किया जाए। जैसे– आवैं, जावैं, लीजे, कीजैं आदि।
- कुछ शब्दों के बहुवचन रूप हिंदी में अमानक रूप के प्रयुक्त होते है, उनका मानक रूप में प्रयोग किया जाए। जैसे राजे > राजा (दो राजा, पांच राजा), लड़कियें > लड़कियाँ (दो लड़कियाँ > दस लड़कियाँ) आदि।
- केवल आकारंत विशेषणों को विकारी माना जाना चाहिए, शेष विशेषण अधिकारी ही माने जाने चाहिए। जैसे– काला > काली, काले।
इस प्रकार द्विवेदी युग में हिंदी में भाषायी अनुशासन को अपनाकर व्याकारणीक त्रुटियों को दूर करते हुए खड़ी बोली को हिंदी के मानक रूप में स्थापित किया। द्विवेदीजी की प्रेरणा से कामता प्रसाद गुरु ने ‘हिंदी व्याकरण’ के नाम से एक वृहद ग्रंथ लिखा।
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