हिन्दी गद्य के विकास में बालकृष्ण भट्ट का योगदान (टिप्पणी)
उत्तर
बालकृष्ण भट्ट हिन्दी के सफल पत्रकार, उपन्यासकार, नाटककार और निबंधकार थे। भट्ट जी को को आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जाता है। हिन्दी गद्य के महित्य निर्माताओं मे उनका प्रमुख स्थान है।
बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु मंडल के लेखको मे सबसे वरिष्ट लेखक माने जाते है। रामचंद्र शुक्ल जी ने इन्हे “हिन्दी का स्टील” कहा है।
हिन्दी गद्य के विकास में बालकृष्ण ग्रह का योगदान –
- उपन्यासकार के क्षेत्र में ‘नूतन वहाचारी’, ‘सो अजान एक सुजाण’, ‘रहस्यकथा’ नामक उपन्याय बहुत प्रसिद्ध है।
- निम्बंध के क्षेत्र में देखे तो भट्ट जी ने भावनात्मक, वर्णनात्मक, कथानक तथा विचारात्मक सभी प्रकार के निम्बंध लिखे है, किन्तु उनके विचारात्मक निम्बंध अधिक महत्वपूर्ण है।
- 17 वीं शताब्दी के समय बुद्धिप्रधान निबंध लिखने वाले पश्चिमी निम्बंधकार ‘जोसेफ एडिसन’ के समान लिखने के कारण उन्हें ‘हिन्दी का एडीसन’ कहा जाता है। प्रसिद्ध निम्ब्ध - चन्द्रोदय, एक अनोखा स्वपन, प्रेम के बाग का सैलानी आदि है।
- आलोचना के क्षेत्र में भट्ट जी का विशेष योगदान है लाला श्रीनिवासदास के नाटक ‘संयोगिता स्वयंवर’ की सच्ची समालोचना नाम से व्यवहारिक आलोचना की। जिसे हिन्दी साहित्य की पहली व्यावहारिक आलोचन माना जाता हैं।
- भट्ट जी ने कविताओं के स्थान पर गद्यात्मक लेखन को प्रधानता दी, हालांकि कहीं–कहीं पर गद्यो मे भी पद्यात्मकता आ गई।
- भाषा संबधी दृष्टिकोण पर गौर करें तो वे भाषायी शुद्धता के समर्थक नहीं थे। उनका मानना था कि भाषा का विकास विभिन्न भाषाओं के शब्दों के आदान-प्रदान से होता है।
इस प्रकार भट्ट जी ने आधुनिक काल के हिन्दी साहित्य का बहुविध संवर्द्धन किया है। आलोचना के क्षेत्र में उनका प्रयास शुरुआती है, फिर भी नवजागरणकालीन संक्रमण के दौर में हिन्दी साहित्य की गद्य की विभिन्न विधाओं में उनका योगान सराहनीय माना जाता है।
No comments:
Post a Comment