अवधी की व्याकरणिक की विशेषताएं (टिप्पणी)
उत्तर
अवधी अर्द्धमगधी अपभ्रंश से विकसित हुई पूर्वी उपभाषा वर्ग की सर्वाधिक प्रसिद्ध बोली है। जिसका भौगोलिक क्षेत्र अयोध्या, फैजाबाद तथा उसके आसपास का है। प्राचीन काल में यह कौशल नाम से विख्यात था जिसके कारण यहां की बोली कोसली, मध्यकाल में अवधी के विकास का आधार बनी।
उत्तर
अवधी अर्द्धमगधी अपभ्रंश से विकसित हुई पूर्वी उपभाषा वर्ग की सर्वाधिक प्रसिद्ध बोली है। जिसका भौगोलिक क्षेत्र अयोध्या, फैजाबाद तथा उसके आसपास का है। प्राचीन काल में यह कौशल नाम से विख्यात था जिसके कारण यहां की बोली कोसली, मध्यकाल में अवधी के विकास का आधार बनी।
- अवधी की व्याकरणिक विशेषता
- अवधी में संज्ञा के तीन रूप चलते हैं जैसे लारिका, लरिकवा, लारिकउना।
- अवधी में स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्रायः ‘इया’ प्रत्यय लगता है जैसे— बिटिया, बहनिया
- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ई, इनी, इनी, आनी, नी जैसे प्रत्यय लगाए जाते हैं जैसे — देवर>देवरानी, माली मालिनी
- अवधी में एकवचन से बहुवचन बनाने के लिए या तो ‘अ’ का ‘ए’ (बात>बातें) किया जाता है या फिर ‘न’, ‘अन’ या ‘न्ह’ जोड़ दिया जाता है। जैसे— (सखी>सखिन्ह)
- अवधी में प्रायः अकारांत विशेषण प्रयुक्त होते हैं तथा वे हमेशा एक से बने रहते हैं जैसे — छोटा लरकवा, छोट बिटिया इत्यादि।
- अवधी में कर्ता कारक प्रायः विभक्ति और प्रसंग से रहित होता है।
- संज्ञार्थ क्रियाओं में प्रायः ‘बो’ या ‘इबो’ परसर्ग का प्रयोग सामान्यतः होता है जैसे जाइबो, जैबो इत्यादि।
- भविष्य काल की क्रिया में प्रायः ‘ब’ परसर्ग लगाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। जैसे चलब, देखब इत्यादि।
- अवधी की भूतकालिक क्रियाओं में प्रायः न्ह, न्हा, न्ही परसर्ग होते हैं। जैसे लीन्ह, लीन्हा, लीन्ही आदि।