मध्यकाल में काव्य भाषा के रूप में अवधी की विशेषताएं (टिप्पणी)
उत्तर
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अवधी अर्धमगधी अपभ्रंश से विकसित हुई पूर्वी उपभाषा वर्ग की सबसे प्रसिद्ध बोली है। अवधी का भौगोलिक क्षेत्र अयोध्या, फैजाबाद तथा उसके आसपास का क्षेत्र है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र कोसल नाम से विख्यात था, जिसकी बोली कोसली मध्यकाल में अवधी के विकास का आधार बनी।
- अवधी भाषा में इकारांतता की प्रवृत्ति इसकी प्रारंभिक विशेषता है अपभ्रंश के शब्दों से ही अवधी के शब्द निस्पन्न हुए हैं। जैसे कसुकरू> केहिकर, पयट्ट>पैठ।
- प्रथम चरण की अवधी अपभ्रंश से बहुत मिलती जुलती है परसर्गो के विकास के आधार पर भी अपभ्रंश से अवधी के विकास को दिखाया जा सकता है। जैसे केरह>केरा, केर>कर।
- अवधी गंभीर उदास तथा मर्यादा पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बेहद सहज भाषा है। क्योंकि यह ना तो ब्रजभाषा की तरह अत्यंत कोमल और संगीतात्मक होती है और ना ही खड़ी बोली की तरह अत्यंत कठोर।
- अवधी में लचीलापन विद्यमान है, जिसके कारण यह अन्य भाषाओं के शब्दों को आसानी से ग्रहण कर पाती है।
- अवधी भाषा में ठहराव और बांधने की क्षमता है और इसी क्षमता के कारण अवधी प्रबंध काव्यो के लिए एक सहज भाषा बन गई।
- भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से अवधी का क्षेत्र काफी बड़ा है साथ ही इसका प्रर्योक्ता वर्ग भी काफी बड़ा है।
- अवधी ब्रज भाषा से मिलती-जुलती भाषा है जिसके कारण यह ब्रज प्रदेश में भी आसानी से बोली और समझी जाती है।