रहीम की काव्य भाषा और इसकी विशेषताएं (टिप्पणी)

रहीम की काव्य भाषा और इसकी विशेषताएं (टिप्पणी)

        भक्ति काल की सगुण काव्य परंपरा में रहीम कृष्णकाव्यधारा के प्रमुख कवि माने गए हैं। रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना, जो अकबर के सेनापति थे। लेकिन उनकी प्रसिद्धि का आधार उनका साहित्य है। भक्तिकाल और रितिकाल को जोड़ने वाले कवियों में रहीम का स्थान प्रमुख हैं।

        रहीम की रचनाएं सरस (रस प्रधान) हैं, और इन्होंने भक्ति और नीति जैसे विषयों को भी सरस रूप में प्रस्तुत किया है। सीधी साधी बात को सीधे-सादे शब्दों में यह इस प्रकार व्यक्त करते थे कि उनके बिम्ब की रेखाएं हृदय पर अपनी अमित छाप छोड़ जाती है।

        ब्रज भाषा रहीम के काव्य की प्रमुख भाषा है किंतु ब्रज के साथ-साथ इन्होंने अवधी और खड़ी बोली में भी काव्य रचना की है।

रहीम के काव्यभाषा की विशेषताएं 
  • रहीम ने अपने काव्य के लिए उत्तम और कविजनोचित भाषा शैली का प्रयोग किया है।
  • भारतीय विविध क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग के साथ ही रहीम ने अपने काव्य में रस, अलंकार, छंद आदि का भी सफल प्रयोग किया।
  • मुहावरे और लोकोक्तियां, ऐतिहासिक पौराणिक आख्यान आदि का प्रयोग रहीम के काव्य को शक्ति प्रदान करते हैं।
  •  रहीम के काव्य में फारसी भाषा के शब्द भी प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। कहीं कहीं डिंगल राजस्थानी, कन्नौजी, गुजराती, मराठी तथा पंजाबी के शब्द भी समाविष्ट हुए हैं।
  • मध्यकाल के कवियों में रहीम ही एक ऐसे कवि जिनकी काव्य भाषा में इतनी विविधता दिखाई देती है।

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