हिंदी के विकास में अपभ्रंश के योगदान का आकलन कीजिए।
उत्तर
संस्कृत से हिंदी के विकास में अपभ्रंश एक महत्वपूर्ण चरण है। संस्कृत मूल रूप से विभक्तियो पर आधारित सयोगात्मक भाषा है जबकि हिंदी परसर्गो पर आधारित वियोगात्मक भाषा है।
वियोगात्मकता की यह प्रवृत्ति हिंदी को मूलतः अपभ्रंश से ही मिली है इसके अतिरिक्त ध्वनि संरचना व्याकारणिक सरंचना तथा शब्द भंडार के स्तर पर भी अपभ्रंश का योगदान महत्वपूर्ण है।
उत्तर
संस्कृत से हिंदी के विकास में अपभ्रंश एक महत्वपूर्ण चरण है। संस्कृत मूल रूप से विभक्तियो पर आधारित सयोगात्मक भाषा है जबकि हिंदी परसर्गो पर आधारित वियोगात्मक भाषा है।
वियोगात्मकता की यह प्रवृत्ति हिंदी को मूलतः अपभ्रंश से ही मिली है इसके अतिरिक्त ध्वनि संरचना व्याकारणिक सरंचना तथा शब्द भंडार के स्तर पर भी अपभ्रंश का योगदान महत्वपूर्ण है।
- ध्वनि संरचना के स्तर पर
- ध्वनि संरचना के स्तर पर हिंदी ने संस्कृत की जटिल ध्वनियों को प्रायः अस्वीकार किया है तथा संस्कृत से भिन्न सहज ध्वनियों को स्वीकारा। संस्कृत की दीर्घ ‘ऋ’ हस्व ‘लृ’ तथा दीर्घा ‘लृ’ जैसी ध्वनियां अपभ्रंश में ही समाप्त।
- ‘ऋ’का विकास अ, इ, उ, ए तथा रि के रूप में हुआ। यह प्रवृत्ति हिंदी में भी है उदाहरण मातृ>मात्त, कृष्ण>किशन
- ट वर्ग में 'ढ' तथा 'ड' ध्वनियों का विकास जैसे लड़का बढ़ई आदि।
- नासिक्य व्यंजनों (ड़, ण, न, म) के स्थान पर अनुस्वार के उपयोग की प्रवृत्ति का विकास।जैसे गंड़गा>गंगा, नीलकंठ>नीलकंठ।
- व्याकरण के स्तर पर
- संस्कृत के नपुंसक लिंग की समाप्ति अपभ्रंश में ही, यह प्रवृत्ति हिंदी में भी
- संस्कृत के द्विवचन को अपभ्रंश काल में बहुवचन में शामिल कर दिया और यही स्थिति हिंदी में है
- कारकीय रूप रचना की दृष्टि से निर्विभक्तिक पदों के प्रयोग के साथ-साथ परसर्गो का प्रयोग अपभ्रंश का महत्वपूर्ण योगदान। जैसे सई>से, केर>का के की।
- क्रिया रचना में तिदंत के स्थान पर कृदंतो के प्रयोग पर बल। वर्तमान हिंदी भी कृदंत प्रधान भाषा है।
- हिंदी के विशेषण भी सीधे-सीधे अपभ्रंश से प्रभावित नजर आते हैं जैसे एक्क>एक जइस>जैसा आदि
- शब्द भंडार के स्तर पर
- अपभ्रंस ने संस्कृत के जटिल शब्दों का सरलीकरण किया जिसके परिणाम स्वरूप हिंदी को तद्भव शब्दों का विशाल भंडार विरासत में मिला। देशज शब्दों का विकास प्रारंभ हुआ, विशेष रूप से ध्वन्यात्मक तथा घरेलू जीवन से संबंधित शब्दों का।