“वह बहुत अद्भुत अनुभव था माँ, बहुत अद्भुत। नील कमल की तरह कोमल और आर्द्र, वायु की तरह हल्का और स्वप्न की तरह चित्रमय! मैं चाहती थी उसे अपने में भर लूं और आंखें मूंद लूं।”(2023)

“वह बहुत अद्भुत अनुभव था माँ, बहुत अद्भुत। नील कमल की तरह कोमल और आर्द्र, वायु की तरह हल्का और स्वप्न की तरह चित्रमय! मैं चाहती थी उसे अपने में भर लूं और आंखें मूंद लूं।”(2023)

संदर्भ :- प्रस्तुत व्याख्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। जिसकी रचना 1958 में की गई।

प्रसंग : मल्लिका अपने प्रिय कालिदास के साथ वर्षा-विहार करने के बाद घर लौटी है। उसकी माता अम्बिका उसके इस आचरण से क्षुब्ध है, किन्तु मल्लिका माता की मनः स्थिति का ध्यान न करके अपने वर्षा में भीगने का अनुभव बताती हुई कहती है-

व्याख्या: मां आज आषाढ़ की उस घड़ी का में अद्‌भूत साक्षात्कार कर रही थी, जिसे में अभी अभी देखकर आई हूं। जल से भरे हुए नीले-नीले बादलो से सारा आकाश छाया हुआ ऐसा लग रहा था जैसे जल से भीगा हुआ कोमल नील कमल हो, वायु के समान हल्का और किसी सुन्दर चित्र की तरह मन को मोह लेने वाला। उस रूचिकर दृश्य को देखकर मेरे मन में यह लालसा बलवती हो उठी कि मैं उस समस्त दृश्य को अपनी आंखो में समेट लू और आंखे बंद करके उसका रसास्वादन करती रहूं ताकि बह दृश्य मेरी आंखो में अंकित होकर मुझसे कभी भी अलग न हो सके।

विशेष:-
1) वर्षा विहार के समय कालिदास के साथ सुख के क्षणों में प्रकृति का यह रुप मल्लिका को उमंग प्रदायक प्रतीत हो रहा है।
2) पूरे गद्यांश में मालोपमा अंलकार है।
3) गद्यांश की भाषा आलंकारिक और भावमयी खड़ी बोली हिन्दी है।

No comments:

Post a Comment

UPSC Prelims 2025 Paper PDF – Download Now & Analyze Your Performance

UPSC Prelims 2025 Paper PDF: UPSC Prelims 2025 Paper PDF – Download Now & Analyze Your Performance PdF link Available in this Post.... c...